फ़ासला By Nazm << पहला ख़ुत्बा समीता-पाटिल >> यूँ तो पहले कितनी बार मिला था लेकिन इक दिन मैं ने उस की आँखों में जलती-बुझती रौशनियों को देख लिया था और बहुत हैरान हुआ था आज हमारे बीच इक ऐसी दीवार खड़ी है जिस का कोई नाम नहीं है Share on: