फ़स्ल-ए-इस्तादा By Nazm << आख़िरी बात कंगन >> हमारी नस्ल दश्त-ए-ना-मुराद की वो फ़स्ल है जिसे अँधेरों से नुमू मिली ये वहशतों का नम कशीद कर जड़ों को सींचती रही ये ख़ौफ़ की फ़ज़ाओं में भी फलती फूलती रही ये फ़स्ल-ए-ना-तरस जो अब तमाम है कमाल है जहान-ए-ख़ुश-मआश के किसी नए फ़रेब की है मुंतज़िर Share on: