नहीं हर चंद किसी गुम-शुदा जन्नत की तलाश इक न इक ख़ुल्द-ए-तरब-नाक का अरमाँ है ज़रूर बज़्म-ए-दोशंबा की हसरत तो नहीं है मुझ को मेरी नज़रों में कोई और शबिस्ताँ है ज़रूर मिट के बर्बाद-ए-जहाँ हो के सभी कुछ खो के बात क्या है कि ज़ियाँ का कोई एहसास नहीं कार-फ़रमा है कोई ताज़ा जुनून-ए-तामीर दिल-ए-मुज़्तर अभी अमाज-गह-ए-यास नहीं ताज़ा-दम भी हूँ मगर फिर ये तक़ाज़ा क्यूँ है हाथ रख दे मिरे माथे पे कोई ज़ोहरा-जबीं एक आग़ोश-ए-हसीं शौक़ की मेराज है क्या क्या यही है असर-ए-नाला-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं मह-वशों का तरब-अंगेज़ तबस्सुम क्या है है तो सब कुछ ये मगर ख़्वाब असर क्यूँ हो जाए हुस्न की जल्वा-गह-ए-नाज़ का अफ़्सूँ तस्लीम यही क़ुर्बां--गह-ए-अरबाब-ए-नज़र क्यूँ हो जाए मैं ने सोचा था कि दुश्वार है मंज़िल अपनी इक हसीं बाज़ु-ए-सीमीं का सहारा भी तो है दश्त-ए-ज़ुल्मात से आख़िर को गुज़रना है मुझे कोई रख़्शंदा ओ ताबिंदा सितारा भी तो है आग को किस ने गुलिस्ताँ न बनाना चाहा जल बुझे कितने ख़लील आग गुलिस्ताँ न बनी टूट जाना दर-ए-ज़िंदाँ का तो दुश्वार न था ख़ुद ज़ुलेख़ा ही रफ़ीक़-ए-मह-ए-कनआँ न बनी ब-ईं इनआम-ए-वफ़ा उफ़ ये तक़ाज़ा-ए-हयात ज़िंदगी वक़्फ़-ए-ग़म-ए-ख़ाक-नशीनां कर दे ख़ून-ए-दिल की कोई क़ीमत जो नहीं है तो न हो ख़ून-ए-दिल नज़्र-ए-चमन-बनदी-ए-दौरां कर दे