कभी रेतीले ख़ुश्क मैदान में कोई बादल का आवारा टुकड़ा किसी घर से भागे हुए प्यारे बच्चे की मानिंद आवारगी करता करता ज़मानों से सूखी हुई रेत को प्यार से देखता है वो अच्छी तरह जानता है कि इस रेत के ख़ुश्क सीने में दिल है जो अपनी तबाही पे रोता नहीं है जो कहता नहीं है कि ''आओ मुझे इस गढ़े से निकालो मिरे मुँह को धो कर मिरी माँग में सब्ज़ पत्तों का चंदन भरो'' वो बादल का आवारा टुकड़ा जो बच्चों की मानिंद मासूम है अपनी काजल लगी भीगी आँखों से उस की तरफ़ देखता है वो रोता है और उस के आँसू सुलगती हुई रेत के ख़ुश्क सीने में हलचल मचाते हैं ख़ुशबू लुटाते हैं और उन की ख़ुशबू मुसाफ़िर अकेले मुसाफ़िर से कहती है चलते रहो अभी ज़िंदगी में नमी है अभी सर्द झोंकों का सैलाब सोया नहीं है