ऐ रहनुमा-ए-हिन्द ऐ ख़िदमत-गुज़ार-ए-क़ौम नक़्श-ए-क़दम तिरे हैं ज़माने में यादगार मुश्किल है कोई तुझ सा मिले जाँ-निसार-ए-क़ौम कहने को यूँ तो मुल्क में लीडर हैं बे-शुमार इक आम आदमी था तो ये सब को है ख़बर क़ुदरत ने राज़ तुझ को मगर क्या बता दिया हर मंज़िल-ए-हयात से तेरा हुआ गुज़र हुस्न-ए-अमल ने क्या से तुझे क्या बना दिया आईना तुझ पे हो गया आईन-ए-ज़िंदगी समझा है ख़ूब तू ने अहिंसा के बाब को अपने हर एक काम में अपना के रास्ती तू ने उठाया चेहरा-ए-हक़ से नक़ाब को वो तेरी सादगी तिरे इख़्लास-ओ-इत्तिक़ा मजबूर है ज़बान-ए-क़लम क्या बयाँ करे ईसार-ओ-ज़ब्त-ओ-हौसला-ओ-जौहर-ए-वफ़ा औसाफ़ तेरे कोई कहाँ तक अयाँ करे यकसाँ थे कुल मज़ाहिब-ए-आलम तेरे लिए हर ज़ी-हयात से तुझे दुनिया में प्यार था बद-हाल थे जो उन को उठाने के वास्ते ऐ दर्द-मंद क़ल्ब तिरा बे-क़रार था लेकिन वतन पे आफ़त-ए-ताज़ा है आ गई फिर हो रहा है ज़ेर-ओ-ज़बर अम्न का निज़ाम आँधी हवा-ओ-हिर्स की भारत पे छा गई फ़रज़ंद तेरे भूल चुके हैं तिरा पयाम आज़ाद हो के भी न कोई यूँ ग़ुलाम हो बा-ईं-हमा दुआ है वतन शाद-काम हो