एक फ़क़ीर एक इंसाँ पैकर-ए-इख़्लास रूह-ए-रास्ती इक फ़क़ीर-ए-बे-नवा ईसार जिस की ज़िंदगी जिस के हर क़ौल-ओ-अमल में अम्न का पैग़ाम था जिस का हर इक़दाम गोया आफ़ियत-अंजाम था जिस की दुनिया बंदगी भगती सुरूर-ए-जावेदाँ जिस की दुनिया कैफ़-ओ-सरमस्ती की हासिल बे-गुमाँ आश्ती थी जिस की फ़ितरत जिस का मज़हब प्यार था ख़िदमत-ए-इंसानियत का जो अलम-बरदार था अज़्म ने जिस के हर इक मुश्किल को आसाँ कर दिया जज़्बा-ए-एहसास-ए-ख़ुद्दारी बशर में भर दिया नाज़ उठाए हिन्द के वो हिन्द का ग़म-ख़्वार था कारवान-ए-हुर्रियत का रहबर-ओ-सालार था ये भी है मोजिज़-बयानी उस की हर तहरीर की नक़्श-ए-फ़र्सूदा से पैदा इक नई तस्वीर की ख़ाक से शो'ले उठे और आसमाँ पर छा गए माह-ओ-अंजुम बन गए कौन-ओ-मकाँ पर छा गए तीरगी भागी जहालत की फ़ज़ा छुटने लगी हौले हौले तीरा-ओ-तारीक शब कटने लगी हर तरफ़ कैफ़-ओ-मसर्रत हर तरफ़ नूर-ओ-सुरूर ग़ुंचे ग़ुंचे पर तबस्सुम चश्म-ए-नर्गिस पर ग़ुरूर ये फ़ुसूँ-कारी हुई जिस के सबब वो कौन था ये जुनूँ-कारी हुई जिस के सबब वो कौन था नाम था गाँधी मगर उस के हज़ारों नाम हैं एक मय-ख़ाना है जिस में हर तरह के जाम हैं