ता-हद्द-ए-नज़र जब नज़रों में जन्नत के नज़ारे होते थे बातों में किनाए होते थे नज़रों में इशारे होते थे ऐसे में जो आँसू गिरते थे गिरते ही सितारे होते थे जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे वो रात का सुंदर सन्नाटा चुप साधे हुए जैसे मंज़िल गंगा की धड़कती छाती पर अरमाँ के दिए झिलमिल झिलमिल पानी में लरज़ती रहती थी चाँद और सितारों की महफ़िल जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे हर मौज-ए-रवाँ पर लहराती हँसती सी रुपहली इक धारी जैसे किसी चंचल के तन पर लहराए बनारस की सारी गंगा की अदा प्यारी प्यारी कुछ और भी होती थी प्यारी जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे अश्नान निगाहें करती थीं प्रकाश की चढ़ती नद्दी में आकाश के उभरे तारे थे डूबे हुए कैफ़-ओ-मस्ती में बैठे नज़र आते थे हम तुम चंदा की रुपहली कश्ती में जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे महताब की किरनें झुक झुक कर कुछ जाल रुपहली बुनती थीं गंगा की क़सम मौजें आ कर क़दमों पे सर अपना धुनती थीं सब प्रेम कथाएँ कहती थीं सब प्रेम कथाएँ सुनती थीं जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे यूँ राग सा छेड़े रहता था बहता हुआ पानी का धारा जैसे कोई जोगी रात गए गाता हो बजा कर इक तारा इस झूमती गाती गंगा का होता था समाँ प्यारा प्यारा जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे अरमानों की कलियाँ खिलती थीं आशाओं के दीपक जलते थे बदमस्त हवाओं के झोंके चलते हुए पंखा झलते थे रात और हसीं हो जाती थी इस हुस्न से हम तुम चलते थे जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे गंगा के किनारे आते थे आज़ाद तबीअ'त होती थी बेबाक से हम तुम रहते थे बेबाक मोहब्बत होती थी हर शय पे हुकूमत करते थे हर शय पे हुकूमत होती थी जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे जैसे कि 'नज़ीर' उन रातों पर क़ुदरत भी करम फ़रमाती थी बेदार ख़ुदा कर देता था आँखों में अगर नींद आती थी मंदिर में गजर बज जाता था मस्जिद में अज़ाँ हो जाती थी जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे