मैं ख़ुदा की तख़्लीक़ कर्दा इक ऐसी नज़्म हूँ जिस की नग़्मगी और तरन्नुम रूह के तारों में रवाँ-दवाँ तुम्हारी फ़िक्र के पाकीज़ा लम्स से जिला पाए मगर तुम जिस्म के जंगल में उलझ कर हैवान बन गए हो और रूह के आहंग से महरूम रह कर नहीं जानते कि ख़ुदा ने इस जिस्म में ही मलफ़ूफ़ करके तुम्हें नवाज़ा मोहब्बत के उलूही सरों से गर तुम मुझे पहचान लो तो इस ज़मीं पर मिस्ल-ए-जन्नत अपने हम-नशीं इक हूर पाओ मगर ये मुमकिन जभी था कि तुम अपनी रूह को पाक रखते सरशार रहते