बगूला ख़ाक-ज़ादा फ़र्श उफ़्तादा हवा जारूब करती है तो उस का जिस्म ढलता है सफ़र की गर्दिशें सौदा-ए-बातिन मुंतशिर सोचें हयूले सा बगूला बे-शबाहत क़ैस-ज़ादा शहर की गलियों में चकराता है ख़ुद मैं चीख़ता पल में कई क़रनों के बल खाता है गर्द ज़र्द का झूला बगूला हिज्र-ज़ादा बल्कि हिजरत-ज़ाद सहरा से अभी बस्ती में आया था डरे सहमे हुए लोगों की आँखें हश्र-बस्ता थीं अभी दो-चार गलियाँ तय न हो पाईं ख़म-ओ-पेच उस की रह में आए ज़र्रे कसमसाए जिस्म के आज़ा झड़े आहिस्ता आहिस्ता उड़ान अंदोह में बदली और अब लोगों के क़दमों में कोई वामाँदा-गर्द बे-किनारा फ़तादा है फ़र्दा की धुन में कोई हो बस इक हयूला है मिरे बातिन में जो कुछ पेच खाता है हयूला या बगूला है मैं पानी और मिट्टी से बहुत डरता हूँ हिजरत से गुज़रता हूँ उभरता हूँ बिखरता हूँ