ग़ुलाम का दुख By Nazm << दुश्वार दिन के किनारे रात हुइ तो >> मैं इक ग़ुलाम हूँ मगर ये ज़ुल्म कब तलक सहूँ मैं अपने मालिकों से किस तरह कहूँ कि मेरे भाइयों को मुझ से ज़ियादा रोटियाँ न दो ख़ुदा के वास्ते ये ज़ुल्म मत करो Share on: