इक रोज़ किसी गाय के जी में ये समाया इंसान ने हम को तो बुरी तरह सताया लाज़िम है कि इक जल्सा करे क़ौम हमारी और आ के शरीक उस में हो हर अपना पराया तज्वीज़ हों इस ज़ुल्म से बचने के तरीक़े हर रोज़ की सख़्ती से तो दम नाक में आया कुछ और भी गाएँ जो वहाँ पास थीं मौजूद उस गाय ने उन सब को भी ये भेद बताया बस हो गई फिर जलसे की तारीख़ मुक़र्रर उन गायों ने इस में बड़ी गायों को बुलाया जब आ के वहाँ बैठ गईं सैंकड़ों गाएँ इक गाय को इस जलसे का सरदार बनाया इक गाय ने फिर उठ के कहा सुनती हो बहनो इंसान ने हम को तो बहुत नाच नचाया अब बढ़ गए हैं ज़ुल्म-ओ-सितम हद से ज़ियादा कर डाला है ज़ालिम ने हज़ारों का सफ़ाया दाने का तो क्या ज़िक्र नहीं घास भी मिलती भूके रहे फ़ाक़ों ने हमें ख़ूब घुलाया इस तरह जो कमज़ोर हुए हम तो सितम है ज़ालिम ने क़साई से हमें ज़ब्ह कराया मोची के हवाले हुई फिर खाल हमारी अफ़्सोस है उस ने भी तो जूता ही बनाया बस इस से ज़ियादा भी न होगी कोई ज़िल्लत अफ़्सोस है पहले से हमें ध्यान न आया इंसान ने कुछ क़द्र न की रंज है इस का घी हम ने खिलाया उसे और दूध पिलाया बेहतर है कि अब छोड़ दें हम उस से तअ'ल्लुक़ जंगल में रहें शहर में कुछ चैन न पाया घास और हरे खेत चरें अपनी ख़ुशी से आज़ाद हों क्यों जान को ये रोग लगाया तक़रीर हुई ख़त्म तो इक नीली सी गाय झुँझला के उठी और उसे ग़ुस्सा बहुत आया कहने लगी सुन ऐ मिरी पुर-जोश बहन सुन इंसान का जो ज़ुल्म-ओ-सितम तू ने जताया इंसाफ़ से देखो तो ये है फ़र्क़ समझ का एहसान जो उस का है वो क्यों दिल से भुलाया वो रात को देता है हमें वक़्त पे चारा सर्दी हो तो करता है हमारे लिए साया बरसात में मच्छर भी उड़ाता है धोएँ से उस ने हमें तकलीफ़ से और दुख से बचाया हर तरह से करता है हिफ़ाज़त वो हमारी क्या हो गया हम ने जो उसे दूध पिलाया जंगल में ये आराम ये राहत नहीं हरगिज़ तौबा करो तौबा ये है क्या जी में समाया जंगल में तो हैं शेर भी चीते भी हज़ारों खा जाएँ हमें फाड़ के कर डालें सफ़ाया सर्दी हो तो जंगल में नहीं कोठरी कोई बारिश हो तो छप्पर है कोई छत है न साया इंसान हमारे लिए राहत का सबब है बस हम ने उसे सुन लिया जो तुम ने सुनाया अच्छी नहीं नाशुक्र-गुज़ारी की ये बातें अफ़्सोस है जलसे में यहीं वक़्त गँवाया इंसान ने कुछ ज़ुल्म भी हम पर किए बे-शक लेकिन न बचा उस से कोई अपना पराया जो अपने ही हम-जिंसों के हो ख़ून का प्यासा क्या शिकवा अगर हम पे उसे रहम न आया ऐ बहनो मुनासिब है कि तुम सब्र करो अब कहते हैं ख़ुदा को भी तो ये सब्र है भाया उस गाय की तक़रीर से चुप हो गई गाएँ फिर सब ने कहा ठीक है जो तुम ने बताया