जाना था ससुराल से मुश्किल रहने में रुस्वाई थी हम ने तेरे जहाँ में मौला कैसी क़िस्मत पाई थी सास सुसर की ख़िदमत में हमें सारा दिन लग जाता था फिर भी हम को बीवी ने हर बात पे डाँट पिलाई थी हम ही थे तक़दीर के मारे जो इस घर में ब्याहे गए वर्ना बहुत से दामादों की लाटरी भी निकल आई थी अब रोते हैं उस दिन को जब हाँ कह कर मुस्काए थे क्या मालूम था उस मुस्कान से हम ने ग़ुलामी पाई थी बन गए घर-दामाद तो फिर भला कौन हमें इज़्ज़त देता सास पिटाई कर के गई तो सुसर ने डाँट पिलाई थी इज़्ज़त-ए-नफ़्स का सौदा कर के ख़ून के घूँट पिए हर दम भीगी बिल्ली बन कर हम ने अपनी उम्र बिताई थी