गुज़ारिश By Nazm << आँखें भूल आया हूँ जो बाज़ार चहकता था हर शाम >> सुनो आओ इधर बैठो हम अपने मसअलों का हल निकालें तुम्हें जो भी परेशानी है मुझ से जो तकलीफ़ें हैं सब खुल कर बताओ मगर घर छोड़ के ऐसे न जाओ मगर घर छोड़ के ऐसे न जाओ Share on: