किसी आँख के पपोटों के खुलने और बंद होने के दरमियान एक रौशनी का आसमान अपनी छब दिखा के कहीं गुम हो गया है और मैं कभी अपनी आँख की पुतलियों के जागते हुए अंधेरों में उसे ढूँडती हूँ और कभी खुली आँख के क़लम से लिखे गए अक्स में उसे तराशती हूँ मगर वो रौशनी का आसमान मुझे मिल नहीं रहा है