गुनाह ओ सवाब By Nazm << ''खेल जारी रहे... एक रौशन जवाँ जुस्तुजू >> मेहरबाँ रात ने अपनी आग़ोश में कितने तरसे हुए बे-गुनाहों को भींचा दिलासा दिया और उन्हें इस तरह के गुनाहों की तर्ग़ीब दी जिस तरह के गुनाहों से मीलाद-ए-आदम हुआ था Share on: