ज़िंदगी हादसात लगती है कितनी छोटी सी बात लगती है तंग सी काएनात लगती है मुख़्तसर जब हयात लगती है क़ैद-ए-ग़म और बंदिश-ए-हस्ती क़ैद में गुज़री रात लगती है हसरतों के हुजूम में अक्सर ज़िंदगी मुम्किनात लगती है वो भी अक्सर उदास होते हैं हर ख़ुशी जिन के साथ लगती है अश्क-बारी न पूछिए हम से आँख सावन की रात लगती है लूट लेता है ग़म ख़ुशी दिल की मुश्किलों से जो हाथ लगती है मेहरबाँ होंगे वो कभी मुझ पर मुँह से निकली सी बात लगती है ज़िंदगी और ज़िंदगी के ग़म इक लुटी सी बरात लगती है ज़िंदगी मुख़्तसर है तो कितनी एक भूली सी बात लगती है ना-मुरादी सी ना-मुरादी है ज़िंदगी खाई मात लगती है ज़ख़्म सीने में छोड़ जाती है जो हँसी इल्तिफ़ात लगती है मौत को मुस्कुराते देखा है थरथराई हयात लगती है कश्मकश ज़िंदगी की ऐ 'अशरफ़' बेजा सा इल्तिफ़ात लगती है