न तू हक़ीक़त है और न मैं और न तेरी मेरी वफ़ा के क़िस्से न बरखा-रुत की सियाह रातों में रास्ता भूल कर भटकती हुई सजल नारियों के झुरमुट न उजड़े नगरों में ख़ाक उड़ाते फ़सुर्दा-दिल प्रेमियों के नौहे अगर हक़ीक़त है कुछ तो ये इक हवा का झोंका जो इब्तिदा से सफ़र में है और जो इंतिहा तक सफ़र करेगा