धूल में लिपटी दुबली सी हल्की-फुल्की मेरी ये लिखाई क्या हुआ जो महँगे कपड़े नहीं पहनती किसी के बनाए हुए रस्ते पे नहीं चलती ज़रा सा मुँह धो ले अगर ठोकरों से भर के पेट अपना थोड़ा मीठा भी खा ले अगर तो उसे भी महँगे कपड़े दिला देंगे हम कोई नाम दे देंगे उसे इक दिन साफ़-सुथरे किसी रस्ते पे टहला करेगी ये और मुझे बुलाएँगे एक दिन