हमारा डर खुले By Nazm << दुख की परछाईं ऐ जू-ए-आब >> जहान-ए-आरज़ू में बे-यक़ीनी के सभी मौसम हमारे रास्तों को धूल करते हैं कोई इक आयत-ए-रद्द-ए-बला जो ख़ौफ़ से भिंचे हुए जबड़ों तने आसाब को आसूदगी बख़्शे कोई तो इस्म-ए-आज़म हो कि शहर-ए-ज़ात का ये दर खुले हमारा डर खुले Share on: