जो भी किताबें मैं ने पढ़ी हैं एक ज़बाँ हो कर बोली हैं हम सब अच्छे दोस्त तुम्हारे हम सब सच्चे दोस्त तुम्हारे क़िस्से कहानी तुम्हें सुनाते बातें करते दिल बहलाते दुनिया भर की सैर कराते घर बैठे हम तुम्हें घुमाते बड़े बड़ों से तुम्हें मिलाते उन की बातें तुम्हें सुनाते आसमान की सैर कराते चंदा मामा से मिलवाते कभी हवा में तुम्हें उड़ाते कभी ज़मीं की सैर कराते लाल-ओ-गुहर लफ़्ज़ों में छुपे हैं हीरे जवाहर बिखरे पड़े हैं अहल-ए-क़लम ने जो लिक्खा है इक इक जुमला बेश-बहा है शौक़ से मुझ को जो पढ़ते हैं दर्जों में अच्छे लड़के हैं मुझ से मोहब्बत करते हैं जो जागते सोते पढ़ते हैं जो इल्म से माला-माल वही हैं 'ग़ालिब' और 'इक़बाल' वही हैं