मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ हाथ बाँधे पेड़ सारे जंगलों में हैं खड़े सब मवेशी उस की अज़्मत में रुकू करते हुए जानवर सब रेंगते सज्दे में हैं गोया पड़े ज़र्रा ज़र्रा इस ज़मीं का रब का है तस्बीह-ख़्वाँ याद करता है ख़ुदा को हर घड़ी सारा जहाँ ये ज़मीं अल्लाह की हम्द-ओ-सना में है मगन उस की पाकी को बयाँ करता हुआ नीला गगन अज़्मत-ए-रब के क़सीदा-ख़्वाँ हैं ये कोह-ओ-दमन इक उसी के नाम से रौशन हुए कौन-ओ-मकाँ याद करता है ख़ुदा को हर घड़ी सारा जहाँ उस की अज़्मत के शवाहिद चार जानिब हैं अयाँ है हर इक ज़र्रे के दिल में मालिक-ए-मुल्क-ए-जहाँ क्यों मगर इंसान अपने रब से ग़ाफ़िल है यहाँ मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ