हमें ख़ानों में मत बाँटो कि हम तो रौशनी ठहरे किसी दहलीज़ पर जलते हुए शब भर किसी का रास्ता तकते चराग़ों से भी आगे है जहाँ अपना उजालों की कुमक ले कर अंधेरे की सफ़ों को चीर जाते हैं ये जुगनू चाँद और तारे हमारी सूरतें जैसे हमें ख़ानों में मत बाँटो हवा हैं हम भला दीवार-ओ-दर में क़ैद क्या होंगे सुनहरी सुब्ह ढलती शाम की राहत हमीं से है हमें मीज़ान पर रखने से पहले तोलने से क़ब्ल इतना सोच लेना है हमारा बोझ तेरी बंद मुट्ठी में दबी रस्सी उठाएगी भला कैसे कि हम तो शश-जिहत में जिस तरफ़ नज़रें उठाओ देख लो फैली हुई बिखरी हुई हम को कि हम तो ज़िंदगी हैं