दुनिया किस की उँगलियों पर गर्दिश कर रही है हम नहीं जानते हम बस ये जानते हैं हमारा वक़्त तुम्हारी उँगलियों की जुम्बिश का पाबंद है हम ने जब गिरोह बनाए सुर्ख़ नीला पीला सब्ज़ नारंजी कासनी सफ़ेद हमें तुम ने इन में से किसी गिरोह में नहीं रखा दर-अस्ल तुम ने हमें जाना ही नहीं हम तुम्हारी ज़मीन से बाहर थे एक गहरी सियाही में अपनी सियाही में हम इस कोशिश में रहे कि तुम्हारी घूमती हुई ज़मीन की कशिश में दाख़िल हो जाएँ जब हम ऐसा करने में कामयाब हो गए तब हमें पता चला कि ये सब तुम्हारी उँगलियों की जुम्बिश का कमाल है और आज जब हम न चाहते हुए भी तुम्हारे सफ़ेद मरकज़ की सम्त बढ़े चले जा रहे हैं तो हमें अपनी सियाही और इस में रह जाने वाले लोग बुरी तरह याद क्यूँ आ रहे हैं!