कुछ तुम ने कहा कुछ मैं ने कहा और बढ़ते बढ़ते बात बढ़ी दिल ऊब गया दिल डूब गया और गहरी काली रात बढ़ी तुम अपने घर मैं अपने घर सारे दरवाज़े बंद किए बैठे हैं कड़वे घूँट पिए ओढ़े हैं ग़ुस्से की चादर कुछ तुम सोचो कुछ मैं सोचूँ क्यूँ ऊँची हैं ये दीवारें कब तक हम इन पर सर मारें कब तक ये अँधेरे रहने हैं कीना के ये घेरे रहने हैं चलो अपने दरवाज़े खोलें और घर के बाहर आएँ हम दिल ठहरे जहाँ हैं बरसों से वो इक नुक्कड़ है नफ़रत का कब तक इस नुक्कड़ पर ठहरें अब इस के आगे जाएँ हम बस थोड़ी दूर इक दरिया है जहाँ एक उजाला बहता है वाँ लहरों लहरों हैं किरनें और किरनों किरनों हैं लहरें इन किरनों में इन लहरों में हम दिल को ख़ूब नहाने दें सीनों में जो इक पत्थर है उस पत्थर को घुल जाने दें दिल के इक कोने में भी छुपी गर थोड़ी सी भी नफ़रत है इस नफ़रत को धुल जाने दें दोनों की तरफ़ से जिस दिन भी इज़हार नदामत का होगा तब जश्न मोहब्बत का होगा