हमवारी By Nazm << ख़ुद-आगही गुनाहों की धुँद >> सूरज मेरे एक पाँव का जूता है दूसरे पाँव का जूता चाँद इन से रात और दिनों में लँगड़ाता चलता हूँ मैं काश मैं अपने दोनों जूते साथ पहनता फिर कितने आराम से चलता Share on: