दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर ग़म को ख़ुद आकर बहा जाएगी मौज-ए-सुरूर देखता क्या है उठ और फ़िक्र-ए-मय-ओ-पैमाना कर दा'वा-ए-उल्फ़त जता कर मुफ़्त में रुस्वा न हो दार पर चढ़ने से पहले राज़-ए-इश्क़ अफ़्शा न कर ज़र्फ़-ए-नैसाँ चाहती है क़ुल्ज़ुम-आशामी तिरी बर्ग-ए-गुल की तरह शबनम के लिए तरसा न कर काम इब्राहीमियों का है कि खेलें आग से कूद पड़ शो'लों में ख़ौफ़ अंजाम का असला न कर ले के नाम अल्लाह का तूफ़ाँ में कश्ती डाल दे ख़ौफ़-ए-बे-पायानी-ए-दरिया-ए-मौज-अफ़ज़ा न कर ख़ुद अमल तेरा है सूरत-गर तिरी तक़दीर का शिकवा करना हो तो अपना कर मुक़द्दर का न कर साया-ए-शमशीर में पोशीदा जन्नत है मगर ना-कसों के सामने इस भेद का चर्चा न कर