ऐ मिरे ख़्वाबों की मंज़िल ऐ मिरी जान-ए-वफ़ा तू ने मेरे दिल पे जाने सेहर सा क्या कर दिया भूलता हूँ जिस क़दर उतना ही याद आती है तू धड़कनें दिल की फ़ुज़ूँ कुछ और कर जाती है तू तेरे अंदाज़-ए-तकल्लुम पर फ़िदा हर साज़ है चाल में अब्र-ए-ख़िरामाँ का सा इक अंदाज़ है तेरी साँसों की महक से दिल पे छाता है ख़ुमार तू जो आ जाए तो वीराने में आ जाए बहार तेरी आँखों के फ़ुसूँ से दिल मिरा मसहूर है तेरे होंटों का तबस्सुम आब-शार-ए-नूर है तू अगर मिल जाए तो आ जाए इस दिल को क़रार ख़त्म हो जाए मिरी जाँ-सोज़ शाम-ए-इंतिज़ार आज तेरी याद में दिल बे-तरह ग़मगीं है तू न आई तो ये सच्चे प्यार की तौहीन है