ज़िंदगी के मंज़र में हार-जीत का मंज़र कस क़दर उदासी का और बे-नवाई का एक मुंतज़िर मंज़र डूब कर इरादों में टूट कर सराबों में दश्त-ए-बे-अमाँ मंज़र हार-जीत का मंज़र आज अपने शाइ'र से पूछ लें तो अच्छा है क्या गँवा के पाया है और क्या जो खोया है ए'तिबार का मंज़र हार-जीत का मंज़र आज तुम से खेली है ज़िंदगी की वो बाज़ी जिस में हारना शायद जीत का ख़ुलासा है खेल खेल में जानम आओ आज फिर खेलें हार-जीत का मंज़र मुंतज़िर निगाहों में मैं तो हार जाऊँगी सोच लो पिया लेकिन तुम से जीत जाऊँगी