तन्हाई की ख़ामोशी में जी बेकार उलझता है ज़ार ओ परेशाँ रहता हूँ लेकिन लोगों के जमघट में इक मोहमल से शोर-ओ-ग़ुल में शख़्सिय्यत समझौते के तेज़ाब में हल हो जाती है दिल होता है और पशेमाँ तन्हाई की ख़ामोशी में भूत शिकस्त-ओ-नाकामी के इक इक कर के मुझ से जब भी महव-ए-तकल्लुम होते हैं मुझ को अपना ऊँचा सा क़द छोटा छोटा लगता है मैं इक ज़र्रा एक सितारा बन जाता हूँ लेकिन मैं वो तारा कब हूँ कब इन तारों में शामिल हूँ ले के उजाला जो माँगे का अपनी आब बढ़ाने की नाहक़ सी कोशिश करते हैं तन्हाई की ख़ामोशी! ये घूँट है इक ज़हर-ए-क़ातिल का घूँट है इक अमृत का भी ये घूँट मैं दोनों पी लेता हूँ रात गए उजले बिस्तर पर सो जाता हूँ पहली किरन के साथ सुनहरी पगडंडी का हो जाता हूँ