ख़ाली गिलास के मुक़द्दर में होंटों का लम्स हाथों की नर्मी कहाँ शबनम रोती है उसे फ़ना का ग़म है लम्स की क़ीमत का एहसास नहीं है उस को फूलों की आग़ोश में मौत भी हसीन हो जाती है ज़िंदगी की तरह ख़ुश-क़िस्मत हैं वो लिफ़ाफ़े जिन पर सब्त होती है मोहर हुसैन लबों की मुझे भी कोई छोले मुझे भी कोई पी ले मैं फिर टूट-फूट जाऊँगा ख़ाली गिलास के मुक़द्दर में मगर होंटों का लम्स हाथों की नर्मी कहाँ