हसरत By Nazm << कहाँ रौज़न बनाएँ रम्ज़ >> जब शाम के साए ढल जाएँ जब शमएँ फ़लक की जल जाएँ जब रात दरख़्शाँ हो जाए पुर-नूर शबिस्ताँ हो जाए तब साथ मिरे तुम सो जाना और ख़्वाब-ए-ज़र्रीं में खो जाना Share on: