हिज्र की उम्र बढ़ी है तो हम उन आँखों को अब किसी ख़्वाब-नगर में नहीं जाने देंगे ग़म से अब दोस्ती कर लेंगे ख़ुशी को नहीं आने देंगे हिज्र के वक़्त में अहवाल शब-ओ-रोज़ का क्या पूछते हो उस में साअ'त भी ज़मानों से बड़ी होती है दिन खड़ा होता है जल्लाद के मानिंद सभी रातों पर रात डाइन की तरह वक़्त के नाके में अड़ी होती है हिज्र के साथ में वो क़हर है जीना भी गराँ और न जीना मुश्किल हिज्र के हाथ में वो ज़हर है पीना भी मुहाल और न पीना मुश्किल हिज्र दरवेश नहीं हिज्र कम-अंदेश नहीं हिज्र नहीं पीर-ए-मुग़ाँ हिज्र अय्यार है दुनिया का तलबगार है अब तक है जवाँ हिज्र की उम्र बढ़ी है तो चलो हम ख़ुद ही नक़्श सब दिल से मिटा देते हैं हाथ जीने से उठा लेते हैं