बहुत दिनों से मुझे इंतिज़ार है लेकिन तुम्हारे शहर से कोई यहाँ नहीं आया मैं सोचता हूँ तो बस ये कि अब तुम्हारी शक्ल गुज़रते वक़्त के हाथों बदल गई होगी ख़मीदा ज़ुल्फ़ों की काली घटा में अब शायद सफ़ेद बालों की तादाद बढ़ गई हो गी तुम्हारे गाल पे जो एक तिल चमकता था पता नहीं वो चमक इस में अब भी बाक़ी है तुम्हारी आँखों में इक चाँदनी सी रौशन थी पता नहीं वो दमक इस में अब भी बाक़ी है तुम्हारी बातों में फूलों की सी महक थी जो पता नहीं वो महक अब भी सुनने वाले को मशाम-ए-जाँ में उतर कर निहाल करती है तुम्हारे माथे पे जो एक चाँद रौशन था मुझे गुमान है वो चाँद बुझ गया होगा मैं सोचता हूँ तो बस इस क़दर कि अब तुम ने पुराने क़िस्से को दिल से भुला दिया होगा यक़ीं मुझे भी है अब मिल न पाएँगे हम तुम मगर ये रिश्ता-ए-दिल कस तरह से तोड़ा जाए फ़साना जो कि मुकम्मल न हो सका उस को कहाँ पे ख़त्म किया जाए कैसे मोड़ा जाए बहुत दिनों से मुझे इंतिज़ार है लेकिन तुम्हारे शहर से कोई यहाँ नहीं आया