शराब-ए-शोर से लबरेज़ है दुनिया का पैमाना हरीफ़-ए-दीन-ओ-दानिश है मज़ाक़-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना बशर इबलीस को तज़्वीर-ए-नौ का दर्स देता है मुज़य्यन है गुनाह-ए-गूना-गूं से हर परी-ख़ाना उलूम-ए-नौ से रौशन बज़्म है तहज़ीब-ए-हाज़िर की यद-ए-तज्दीद ने ढाला है दिल-आवेज़ बुत-ख़ाना ये माना मग़रिबी तालीम ने पर्वाज़ बख़्शी है ये माह-ओ-ख़ुर भी बन जाएँगे अब क़िंदील का शाना ख़ुदा के चाहने वाले अभी तक भोले-भाले हैं बना रखा है हिर्ज़-ए-जाँ सदा माज़ी का अफ़्साना गुनाह-ए-ताज़ा की तख़्लीक़ से इबलीस क़ासिर है दिमाग़-ए-फ़ित्ना-जू पर है मुसल्लत ज़ोफ़-ए-पीराना बहुत मजबूर बे-चारा है ख़ुद पीराना-साली से उसे मालूम क्या है मासियत का ताज़ा पैमाना ख़ुदा वाले तअ'ज्जुब है कि मासूम-ओ-मुक़द्दस हैं अज़ाब-ए-नौ-ब-नौ से है मुरस्सा आइना-ख़ाना रह-ए-तश्कीक पर रख़्श-ए-हुनर पैहम ख़िरामाँ है बहुत मुश्किल है फ़ितरत का अभी तस्ख़ीर फ़रमाना मुसावात-ए-नज़र का मुद्दतों से शोर सुनता हूँ फ़ज़ा दुनिया की है लेकिन अभी तक फ़िर्का-वाराना हवस का दर्स तो यारो बहुत ही ख़ूब है लेकिन अभी क़ुरआन की तफ़्हीम से आजिज़ है फ़रज़ाना बुतों का तोड़ना था कार-ए-आसाँ अहद-ए-माज़ी में वले मुश्किल है ढाना आज की हिकमत का बुत-ख़ाना क़ुलूब-ए-अस्र-ए-हाज़िर में अभी ईमान ढल जाए फ़क़ीरों का नहीं देखा है ए'जाज़-ए-कलीमाना तफ़ाख़ुर के मरीज़ों के लिए इक्सीर होती है सरासर बंदा-ए-'बेबाक' की तर्ज़-ए-फ़क़ीराना