दिन-दहाड़े लफ़्ज़ को बाज़ार में क़त्ल कर डाला गया ये ख़बर तुम ने सुनी ये ख़बर मैं ने सुनी और सुन कर चुप रहे मरने वाले का कोई वारिस न था इस लिए हुक्काम ने मक़्तूल की बे-नाम लाश मुर्दा-घर को भेज दी फिर ख़ुदा मा'लूम उस का क्या हुआ एक दिन कुछ सर-फिरे ढूँढने निकले लुग़त के मक़बरे तो अचानक उन को ये कतबा मिला सब से पहले लफ़्ज़ था