हीरोशीमा की सर-ज़मीं पर सरकारी दफ़्तर के गुम्बद के सामने जहाँ कई बरस पहले मेरे ही हाथों ने बम गिराया था आज मैं तारीख़ का गुनाहगार अपने वजूद के मा'नी की तलाश में सर झुकाए खड़ा हूँ जहाँ हर जवाब फ़क़त सन्नाटा है न किसी साँस की आवाज़ न चराग़ की लौ इस सन्नाटे में मेरे बम से जले पेड़ से एक अंकुर फूटा और मुझे देख कर मुस्कुरा दिया