औरों की क्या कहिए ख़ुद मेरा दिल भी अँगारों का मतबख़ है सदा मिरी आँखों में इक वो कशिश दहकती है जो सब को अपनी जानिब खींच कर मेरे वार की ज़द में ले आती है सब कुछ मेरी तलब की तिश्नगियों के दहाने पर है अँगारों के उस मतबख़ में गिरने को है गाढ़ा लज्ज़ लहू इक वो कैलूस जो अँगारों का इस्तिहाला है उस मेरे दिल की काली क़ुव्वत है में जिस के पस में हों ये क़ुव्वत मुझ से कहती है देख मिरे अंगारे मेरी तड़प का रंग हैं अब कुछ तो उन की ख़ातिर भी और अंगारे उगलती साँसों के साथ अब में इस दुनिया के अंदर अपने शिकार की तलाश में इक इक रूह की घात में इक इक रूह के सामने सवाली बन के खड़ा हूँ मेरे दिल में अँगारों के दंदाने पैहम जुड़ते और खुलते हैं बाहर किसी करम की बनावट में होंट एक ओंखा ठहरा ठहरा टेढ़ा ज़ाविया सा हैं कोई मुझे अब पहचानेगा किस तरह हँस हँस कर मुझ से मिलती है दुनिया बद-बख़्त