सेहर-ए-मौसीक़ी हुआ फिर गूँज उठे गोकुल के बन रक़्स फ़रमाने लगी फिर वादी-ए-गंग-ओ-जमन फिर शबाब-ए-मस्त निकला मल के चेहरे पर गुलाल फिर निखर आया बहार-ए-लाला से हुस्न-ए-चमन फिर हवा-ए-तुंद ले कर आई होली की बहार हाथ में पिचकारियाँ ले कर चले फिर मर्द-ओ-ज़न फिर जुनून-ए-ज़िंदगी को मिल गया नाम-ए-सुरूर फिर नज़र आने लगा हर सादगी में बाँकपन ढोलकें बाजे मजीरे और खड़तालें बजीं फिर फ़ज़ाएँ हो गईं बंसी की लय से नग़्मा-ज़न रंग में डूबी हुई हैं गोपियाँ सर-ता-क़दम ऊदे ऊदे पीले पीले नीले नीले पैरहन