बज रहे हैं मध-भरी आवाज़ में होली के साज़ खिंच के आँखों में न आ जाए दिल-ए-हिरमाँ-नवाज़ खेलती हैं रंग आपस में कुँवारी लड़कियाँ गीत होली के ज़बाँ पर हाथ में पिचकारियाँ नालियों में गिर रहे हैं लोग पी पी कर शराब मुल्क में शायद नहीं उन के लिए कोई अज़ाब दे रहा है गालियाँ बे-नुत्क़ हर पीर-ओ-जवाँ वाह क्या कहना तिरी तहज़ीब का हिन्दोस्ताँ यूँ जलाई जा रही हैं सैंकड़ों मन लकड़ियाँ अपने शौहर पर सती हूँ जिस तरह हिन्दुवानियाँ इस तरह लकड़ी जलाने से कहीं चलता है काम किस क़दर मोहमल है ऐ सोसाइटी तेरा निज़ाम कुछ घर ऐसे हैं जहाँ जलते नहीं शब को चराग़ ग़ौर फ़रमाते नहीं उस पर मगर अहल-ए-दिमाग़ लकड़ियाँ चुन चुन के लाती हैं सरों पर बूढ़ियाँ झोंपड़ी से तब कहीं उठता है हल्का सा धुआँ ता-ब-कै ये रस्म-ए-बेजा ता-ब-कै ये सुफ़्ला-पन आओ खेलें ख़ून की होली जवानान-ए-वतन