तअल्लुक़ काँच का बर्तन नहीं हाथों से छूटे और चकना-चूर हो जाए तअल्लुक़ आहनी दीवार होता है तअल्लुक़ आसमानों पर चमकता इक सितारा भी नहीं जो रात भर चमके मगर जैसे ही सूरज अपनी किरनों को ज़मीं पर फैलने का हुक्म दे तो वो कहीं रू-पोश हो जाए तअल्लुक़ आसमाँ है तअल्लुक़ मौसमों का हुस्न कब है जो सदा बाक़ी नहीं रहता तअल्लुक़ तो हवा है और ज़मानत है हमारी ज़िंदगी की तअल्लुक़ अहद कब है जो निभाता ही नहीं कोई हमेशा टूट जाता है तअल्लुक़ इश्क़ है एहसास है ख़ुशबू है जादू है तअल्लुक़ वक़्त की सूरत हमेशा चलता रहता है तअल्लुक़ साँस के मानिंद होता है तअल्लुक़ तोड़ने वालो तुम्हें मालूम है सच्चा तअल्लुक़ ख़त्म हो सकता है लेकिन मर नहीं सकता