हुस्न है मौजूद हर जा चश्म-ए-बीना चाहिए दीदा-ए-दिल खोल कर हाँ उस को देखा चाहिए उस का जल्वा है अयाँ गुल-हा-ए-रंगा-रंग से सब्ज़े में शाख़ों में घर उस ने किया सौ ढंग से जागुज़ीँ है रात दिन ये बहर-ओ-बर के देस में शहर में आता है ये लाल-ओ-गुहर के भेस में हुस्न-ए-क़ुदरत मुनहसिर कुछ छोटी चीज़ों पर नहीं बल्कि ये जल्वा-नुमा है हर जहाँ में हर कहीं कोह-ओ-राग़-ओ-अब्र-ओ-बाद-ओ-महर-ओ-मह जिन्न-ओ-बशर नूर-ए-हुस्न-ए-हक़ से हैं ये सब मुनव्वर सर-बसर है जहाँ सारा मुनव्वर और मंदर हुस्न का देखिए जो घर नज़र आता है वो घर हुस्न का आश्ना हैं जो वजूद-ए-हुस्न-ए-क़ुदरत से वो सब जानते हैं आप को महसूर-ए-नूर-ए-हुस्न-ए-रब दिल अगर दाना बुवद दर हर-सुख़न असरार हस्त चश्म गर बीना बुवद यूसुफ़ ब-हर-बाज़ार हस्त