इबहाम दीदा

मुख़ातिब
आसमाँ है या ज़मीं

मालूम कर लेना
कि दोनों के लिए तश्बीब के

मिसरे अलग से हैं
कहीं ऐसा न हो

कि आसमाँ बद-ज़न
ज़मीं नाराज़ हो जाए

क़सीदे में गुरेज़-ए-ना-रवा का
मोड़ आ जाए

तिरे सर पे कोई इल्ज़ाम आएद हो
कि तू भी अंदलीब-ए-गुलशन-ए-ना-आफ़्रीदा है

सुख़न-फ़हमी तिरी गुंजलक
बयाँ इबहाम-दीदा है

ये मशवरा इस लिए देता हूँ
जान-ए-मन

कि गर्दिश में घिरा है आसमाँ
बरहम तबक़ सारे

ज़मीं भी अपने महवर से अलग चक्कर लगाती है
क़सीदा सोच के लिखना

कहीं इनआम ओ ख़िलअत की जगह
कासा न भर जाए

मलामत से
ख़जालत से

नदामत से


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