मुख़ातिब आसमाँ है या ज़मीं मालूम कर लेना कि दोनों के लिए तश्बीब के मिसरे अलग से हैं कहीं ऐसा न हो कि आसमाँ बद-ज़न ज़मीं नाराज़ हो जाए क़सीदे में गुरेज़-ए-ना-रवा का मोड़ आ जाए तिरे सर पे कोई इल्ज़ाम आएद हो कि तू भी अंदलीब-ए-गुलशन-ए-ना-आफ़्रीदा है सुख़न-फ़हमी तिरी गुंजलक बयाँ इबहाम-दीदा है ये मशवरा इस लिए देता हूँ जान-ए-मन कि गर्दिश में घिरा है आसमाँ बरहम तबक़ सारे ज़मीं भी अपने महवर से अलग चक्कर लगाती है क़सीदा सोच के लिखना कहीं इनआम ओ ख़िलअत की जगह कासा न भर जाए मलामत से ख़जालत से नदामत से