वो मेरी रूह का मक़्सूद-ओ-फ़ख़्र-ए-मौजूदात उसी के नूर से रौशन है जल्वा-गाह-ए-सिफ़ात सिखा रही है ख़िरद तुझ को फ़न्न-ए-शीशा-गरी अजब नहीं जो परेशाँ हो कारोबार-ए-हयात हर एक ज़र्रे में हैं लाख बिजलियाँ ऐ दोस्त निगाह-ए-शौक़ न हो जाए मरकज़-ए-आफ़ात सुन ऐ फ़रेफ़्ता-ए-क़िस्सा-हा-ए-हिज्र-ओ-विसाल अमीक़-तर हैं समुंदर से ज़िंदगी के निकात ख़ुदी में डूब के हंगामा आज़मा हो जा ख़ुदी न हो तो न सोज़-ए-यक़ीं न सोज़-ए-हयात मिरी निगाह ख़ुराफ़ात-ए-माद्दी पे नहीं ख़िरद है पस्त हक़ीक़त है अरफ़ा'उद्दरजात नज़र मिला कि बताऊँ ये ज़िंदगी क्या है न हो ख़ुमार तो बढ़ता नहीं मज़ाक़-ए-हयात ज़मीन-ए-शोर में बाग़-ए-हयात कर ता'मीर यक़ीन-ओ-अज़्म से हासिल है आदमी को सबात सुकून-ए-दीदा-ए-तिश्ना हैं मौजा-हा-ए-सराब ख़ुदा करे कि न टूटे तिलिस्म-ए-लात-ओ-मनात