है ज़बाँ पर सब की मिदहत इल्म की क्यों न हो दिल में मोहब्बत इल्म की क्यों न हो हर इक को चाहत इल्म की हर किसी को है ज़रूरत इल्म की इल्म के रुत्बे से वाक़िफ़ है जहाँ गोशे गोशे में है शोहरत इल्म की जिस को चसका लग गया है इल्म का पूछिए उस से हक़ीक़त इल्म की बस उसी ने पाई इज़्ज़त मुल्क में दिल से की है जिस ने ख़िदमत इल्म की सारे दुनिया का चहीता है ये इल्म रहती है हर दिल में उल्फ़त इल्म की वो ज़लील-ओ-ख़्वार दुनिया में हुआ जिस किसी ने की न इज़्ज़त इल्म की दो जहाँ की उस को ने'मत मिल गई हो गई जिस पर इनायत इल्म की सुर्ख़-रू होता है वो इक दिन ज़रूर रहती है जिस दिल को चाहत इल्म की तख्त-ए-शाही क्या है मिलता है ख़ुदा इस से बढ़ कर क्या हो बरकत इल्म की क्यों किसी के आगे वो फैलाए हाथ हाथ आई जिस के दौलत इल्म की है ये कुंजी ऐश और आराम की क्या बताऊँ क़द्र-ओ-क़ीमत इल्म की सारी दुनिया पा रही है जिस से फ़ैज़ है हक़ीक़त में वो दौलत इल्म की जान से इस को समझते हैं अज़ीज़ जिन पे रौशन है हक़ीक़त इल्म की हो वो बच्चा या हो बूढ़ा या जवान हर किसी को है ज़रूरत इल्म की जाओ 'जौहर' हर कहीं बे-ख़ौफ़ तुम कोई लूटेगा न दौलत इल्म की