हमें किस ने धकेला इस तरफ़ उन नूर बरसाती हुई नीली फ़ज़ाओं से उन्नाबी सुर्ख़ फूलों से अटी मख़मल रिदाई सर-ज़मीनों से कनार-ए-आबजू से वो जहाँ सय्याल चाँदी बह रही थी हमें किस ने जगाया गुनगुनाते ख़्वाब से जिस में किसी लहन-ए-मुसलसल की हसीं तकरार से मीठे मधुर नग़्मे उभरते थे वो जादू सी जकड़ क़दमों में आँखों में समाअ'त में हमें किस ने हटाया फ़ैज़-परवर रेग-ज़ारों से वो जिन की रेत पर मन की फ़रोज़ाँ रौशनी से उन सराबों की छबी बनती वो जिन की तिश्नगी से रूह तक सैराब रहती थी हमें किस ने