हम वो नहीं जो तुम समझते हो हम वो हैं जो तुम नहीं समझते हम लाश के मुँह पे अपनी नज़्म की मिट्टी डालते हैं और चैन से सो जाते हैं सुब्ह उठ कर काम की तलाश में निकलते हैं हमें ऐसे मत देखो जैसे सूखी घास बादल को देखती है हमें ऐसे देखो जैसे मरने वाला गोर-कन को देखता है