इम्कान By Nazm << जिस्म से आगे की मंज़िल हम-ज़ाद >> ये मुमकिन है कि मैं तुम को न याद आऊँ मगर ये भी तो मुमकिन है उतर कर शब की सीढ़ी से कोई बे-नाम परछाईं हटा दे बर्फ़ यादों की Share on: