मैं ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मुझे इक कटहरा फ़राहम कर दिया गया मैं गवाह हूँ लेकिन चश्म-दीद नहीं मुक़द्दस किताब पर हाथ रख कर क़सम खाओ जो भी कहूँगी सच कहूँगी सच के सिवा कुछ भी नहीं मैं ने क़सम खाई और गवाही दी मेरी हलाकत चश्म-दीद न थी सो क़ातिल आज भी घूमता है आज़ादाना मगर मैं क़ैद हूँ झूटी गवाही के इल्ज़ाम में अब भी