सितम-नसीबान-ए-सरज़मीं को पयाम पहुँचा दिया गया है निगूँ-सरी का क़याम होगा सभी निगाहें झुकी रहेंगी हर एक गर्दन पे तेग़ होगी हर एक शह-रग पे होंगे नाख़ुन कि शहर जब तक निगूँ न होगा कमान तब तक तनी रहेगी हमारी अगली हिदायतों तक हर एक जुम्बिश थमी रहेगी ज़मीन-ज़ादे कि इंतिबाह ख़ुदा की मर्ज़ी समझ चुके हैं सो अब ज़बानों पे ख़ामुशी है सो अब मुक़द्दर में गालियाँ हैं चराग़ गुम हैं कि चारों जानिब अँधेरी रातों की आँधियाँ हैं हमारे हिस्से में अपने दुख पर भी क़हक़हे हैं या तालियाँ हैं