शिकायत न करना अगर ये ज़माना पुकारे तुम्हें और सदा मेरी आवाज़ की गूँज हो शिकायत न करना अगर लोग मुड़ मुड़ के देखें तुम्हें और हर शक्ल में मेरी मुस्कान तुम को दिखाई भी दे और सुनाई भी दे शिकायत न करना अगर हर ज़बाँ पर तुम्हारे बजाए मिरा नाम हो तुम्हें मेरी आँखों की तारीफ़ करते हुए सोचना चाहिए था यहाँ साँस लेते हुए ख़्वाब हर आँख के ख़्वाब जैसे नहीं हैं यहाँ ख़्वाब आँखों से बह जाएँ तो अश्क बनते नहीं हैं पिघलते नहीं हैं तुम्हें मेरे हाथों की नर्मी को महसूस करते हुए भूलना तो नहीं चाहिए था कि इक हाथ में एक ख़ाली वरक़ दूसरे में क़लम है शिकायत न करना अगर ख़ुशनुमा रौशनाई में पहले वरक़ पर तुम्हें लोग पढ़ लें